जीवन की इस तंग गली में
लहरा करके जीना सीखा,
चकरा करके गिर कर भी
मैं फहरा करके उड़ना सीखा ।
रोज नई तकनीक सीख कर
नित-नूतन बन जाना सीखा,
पांव हमारे नहीं धरा पर
मैं उड़ रहा विमान सरीखा।
सब कुछ तुच्छ लगे अब मुझको
मनुज नहीं मैं देव बन गया,
सब कुछ मेरी मुट्ठी में है
पृथ्वी समझो सेब बन गया ।
प्रकृति हमारी देख रही थी
अहंकार मेरे भीतर का,
सोची थोड़ा सबक सिखा दूं
मनुज नहीं, कीड़ा कीचड़ का ।
हल्की सी बस फूंक मार दी
दुनिया में चित्कार मच गया,
सारी बुद्धि धरी रह गई
विकसित मानव कहां फंस गया ।
अब से भी तुम आंखें खोल
धरा मात की जय-जय बोल,
सब विकास उनकी ही देन
अहंकार मिट्टी में घोल ।
क्षमा करो हम हैं नादान
प्रकृति हमें दो जीवन दान।
-सत्या
-सत्या
Yes, We must change ourselves.
ReplyDeleteVery nice
Thank you Sir.
Deleteवाह लाज़बाब
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