मानवता की मौत

Lost Humanity

आज क्षितिज में जाकर 
मुझको मन करता है खो जाऊँ,
जो कुछ पाप किया है अब तक 
याद करूँ औ रो पाऊँ। 

जन्म लिया होगा जब हमने 
तब ये जगत निराला था,
निर्मल ह्रदय रहा होगा 
बस दाल था कुछ न काला था। 

जब से हमने चढ़ी सीढ़ीयां  
प्रगति ही बस प्रगति दिखा,
क्या कुछ हमने खोया  
किसी मनुज को नहीं पता।  

मानव से कब दानव बन गए 
हमें तनिक भी खबर नहीं, 
प्रेम, दया, श्रद्धा, पूजा
औ मानवता कब की खोई।

क्रूर हो गए है ये सारे 
दूर हुए प्राकृतिक नज़ारे, 
इस विकास के भेंट चढ़ गयी 
मानव को मत करो क्षमा रे।  

प्रकृति भयंकर रूप दिखा दो 
इन पापी को खूब सजा दो, 
सब नीरीह प्राणी का बदला  
क्या होता है इन्हे दिखा दो।  

                    -Satya


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