जीवन जो आसान लग रही
कभी पहेली बन जाती है
कभी लगे ये खुद की दुश्मन
कभी सहेली बन जाती है ।कभी भीड़ में गुछा हुआ सा
कभी अकेली बन जाती है,
कभी लगे नीरस बोझिल सा
कभी नई-नवेली बन जाती है ।
कभी गुफ्तगू खुद से करती
कभी सभी पर चिल्लाती है,
कभी खुली किताब सी लगती
कभी रहस्य यह बन जाती है ।
क्या जीना मर जाना जीवन
क्या गुत्थी सुलझाना जीवन,
हसना और हसाना जीवन
खाना और कमाना जीवन ।
क्या है जीवन ?
समझ सको तो
मुझको भी बतलाना जीवन
मूर्त खड़ा हो चिंतन करना
या आगे बढ़ जाना जीवन ।
-सत्या
Good ..
ReplyDeleteवाह सर जी
ReplyDeleteKeep visiting
DeleteAwesome Sir!
ReplyDeleteKeep visiting.
Deleteनिःशब्द
ReplyDeleteThanks for comment. Keep visiting.
DeleteKya baat hai sir ekdum sahi....
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