यथार्थ


In deep thought

कटी पंख और प्यासी पंछी
गिरी एक पल जल में
जल पीती, हंसती
सरिता के कल-कल में |

भूल गयी थी
उन पंखो को
नहीं पास थे उसके ,

प्यास गयी
सब आस गयी
डूब गयी एक पल में |

                                  -written 1999
                        -Satya

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